संपादक नयन टवली की कलम से ✍️

भोपाल – मध्यप्रदेश में शराब तस्करी में बड़ा अपडेट सामने आया है, जिसे हाई कोर्ट की सख्त निगरानी में अब स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) जाँच करेगी । ‘घोस्ट ट्रक’ नाम से मशहूर हुए इस मामले में तस्करों और आबकारी विभाग के अफसरों की मिलीभगत सामने आई है। हाई कोर्ट (High Court) के आदेश के बाद धार जिले के तत्कालीन सहायक आबकारी आयुक्त विक्रमदीप सिंह सांगर को सस्पेंड कर दिया गया है। इससे पहले भी दो अन्य अधिकारियों पर कार्रवाई हो चुकी है ।
हाई कोर्ट ने उठाए गंभीर सवाल, SIT करेगी स्वतंत्र जांच
इस मामले में डीजीपी मध्यप्रदेश के आदेश पर गठित SIT की अध्यक्षता इंदौर (देहात) डीआईजी निमिष अग्रवाल करेंगे। टीम में आलीराजपुर एसपी राजेश व्यास और जोबट एडीओपी नीरज नामदेव सदस्य बनाए गए हैं। यह टीम सीधे हाई कोर्ट की निगरानी में काम करेगी और शराब तस्करी से जुड़े सभी अहम पहलुओं की जांच करेगी
जाँच के बिंदु:-एक ही मामले में दो FIR क्यों दर्ज हुईं?
अस्थायी परमिट की प्रक्रिया में कैसे की गई अनियमितता?
क्या आबकारी विभाग की मिलीभगत से हुआ यह घोटाला?
अवैध शराब को वैध बताने के लिए किस स्तर पर किया गया फर्जीवाड़ा ?
क्या होती है SIT और कितनी महत्वपूर्ण होती है उसकी रिपोर्ट ? हम अपने पाठको को बता दें कि आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट अक्सर बड़े मामलों में तब एसआईटी का गठन करता है, जब उसे लगता है कि सरकारी एजेंसियों की रिपोर्ट में पूरा न्याय नहीं हुआ है या फिर सरकारी एजेंसियों द्वारा की गई जांच में उसे कमी नजर आती है,एसआईटी का गठन कई मामलों में राज्य और केंद्र सरकारें भी करती रही हैं ,इसमें जाँच हेतु ईमानदार व काबिल अधिकारियों का एक जाँच दल बनाया जाता है जो मामले की बारीकी से जाँच करता है ।ऐसा माना जाता है कि एसआईटी की रिपोर्ट ना केवल निष्पक्ष होगी, बल्कि उसमें वो पहलू कवर किए जा सकेंगे, जो जांच एजेसियों की जांच में सामने नहीं आ पाते ।SIT जांच में हस्तक्षेप करने का अधिकार किसी के पास नहीं होता ,एसआईटी एक तय समय में जांच पूरी करती है, जिसके बाद रिपोर्ट कोर्ट में पेश की जाती है,अगर एसआईटी का गठन राज्य सरकार ने किया है तो ये रिपोर्ट सरकार को सौंपी जाती है,कोर्ट या सरकार को इस रिपोर्ट को स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार है,कई बार सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट अपनी बनाई एसआईटी की निगरानी भी करता है या समय समय पर उनसे रिपोर्ट भी प्राप्त करता है ।
गौरतलब है अवैध शराब परिवहन का यह मामला अक्टूबर 2024 का है, जब जोबट थाना क्षेत्र में दो ट्रकों से 14,760 लीटर अवैध शराब पकड़ी गई थी। ड्राइवरों के पास कोई वैध परमिट नहीं था। लेकिन दो महीने बाद अदालत में अस्थायी परमिट पेश किए गए, जिनमें जब्त शराब से अलग बैच नंबर दर्ज थे ।
हाई कोर्ट में आबकारी उपनिरीक्षक राजेंद्र सिंह चौहान ने स्वीकार किया कि महज डेढ़ घंटे में परमिट जारी कर शराब ट्रांसफर कर दी गई थी। कोर्ट ने इस बयान को “अविश्वसनीय” मानते हुए अफसरों और तस्करों की साठगांठ की आशंका जताई और जांच के निर्देश दिए ।
जिला अदालत को भी किया गया गुमराह
हाई कोर्ट ने पाया कि जिला न्यायालय को भी गलत तथ्य बताकर गुमराह किया गया , जब्त शराब के बैच नंबर और परमिट में दर्ज बैच नंबर मेल नहीं खाते थे, जिससे स्पष्ट होता है कि तस्करी को वैध ठहराने के लिए दस्तावेज़ों के साथ हेरफेर किया गया , अब देखना यह है कि SIT इस मामले में कितनी गंभीरता से जाँच कर हाई कोर्ट में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करती है या फिर रसूखदार इस जाँच को प्रभावित करवा सकते हैं , अपनी राय कमेंट बॉक्स में ज़रूर बतायें ।